...... दोस्तों कला और संवेदना जीवन में मिठास लाती है, उसे रसमय बनाती है....। कलाकार जीवन में सौन्दर्य को बढ़ाते हैं....। लेकिन स्वयं उन्हें जीवन में सौन्दर्य और आनन्द प्राप्त नहीं हो ये कितना दुखद है ...। आज हम विंन्सैंट वैनगाॅग को कितनी भावनात्मक तीव्रता से याद करते हैं और सदियां उन्हें याद करेंगेी, सराहेंगी . . . फिर भी क्या हम इस कड़वे सच को बदल सकेंगे कि एक अति प्रतिभावान, ऊर्जावान, संवेदनषील कलाकार ने स्वयं को इसलिए खत्म कर लिया क्योंकि दुनिया की बेरूखी उसे बर्दाष्त न हुई ...।
ताज्जुब है कि कई बार समाज अपने समकालिक कलाकारों के प्रति इस कदर उदासीन होता है कि उसे अहसास भी नहीं होता कि वो क्या खो रहा है . . . ! आने वाली पीढि़यां चाहें जितना अफसोस करती रहें वैनगाॅग, गाॅगिन, मोदी गिलयानी जैसे प्यारे कलाकारों को लौटाया नहीं जा सकता है।
आज भी जब हम अति आधुनिक समाज में जीने का दावा करते हैं। एम.एफ. हुसैन के साथ हमने क्या किया . . ! कला का वो बेषकीमती मोती जिसे पलकों पर सजाना था. . . हमने उसे अपने देष अपनी जमीं से बेदखल कर दिया....। 96 वर्ष की उम्र के उस कलाकार को जिसने अपनी उम्र के इतने सारे वर्ष कला को समर्पित कर, कला में पाई जाने वाली सफलता को उच्चतम स्थान तक पहुंचाया.... उस बेषकीमती व्यक्तित्व को हमारी नासमझ नफरत की वजह से अपने अंतिम दिनों में किसी और देष की नागरिकता लेकर जीना पड़ा और अपने देष, अपनी जमीं, अपने लोगों से दूर अंतिम सांसें लेना पड़ी....। समाज हमेषा से ही समय से चूक जाने के बाद लंबे समय तक सिर्फ अफसोस जताता रहता है ....। हम सब जानते हैं ये दुखद है .... मगर कहानियां बार-बार दोहराई जाती है ..... इस दोहराव को रोकें ..... कलाकार जीवन में सौन्दर्य, संवेदना बढ़ाते हैं और येे दोनों चीजें उन्हें स्वयं के लिए भी प्राप्त हो सके.... ऐसा कुछ करने का प्रयास करें। इस दिषा में ‘‘आर्ट एन हार्ट‘ द्वारा की गई पहल अर्थपूर्ण है पूरे ग्रुप को मेरी शुभकामनाएँ . . .
मंगला मिश्रा